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लेखनी कहानी -10-Jan-2023 मुहावरों पर आधारित कहानियां

आज से मुहावरों और कहावतों पर आधारित कहानियां लिखने जा रहा हूं । यह कहानी संग्रह "मुहावरे और कहावतों पर आधारित कहानी संग्रह" के नाम से जाना जायेगा । इस कहानी संग्रह में रोज कम से कम एक कहानी किसी मुहावरे या कहावत के आधार पर होगी । आज की कहानी "गिरगिट की तरह रंग बदलना" मुहावरे पर आधारित है जिसका नाम है गिरगिट । उम्मीद है कि यह कहानी आपको पसंद आयेगी । समीक्षा करके बताने का श्रम अवश्य करें कि यह प्रयास कैसा रहा । 

1. गिरगिट  

रमेश और सुरेश दोनों भाइयों ने अपने किराने की दुकान को अपने खून पसीने से कहां से कहां पहुंचा दिया था । जिस दुकान से कभी बड़ी मुश्किल से पेट भरने लायक आमदनी होती थी आज उसी दुकान से सब राज पाट हो रहे हैं । कुछ तो कर्मों का असर और कुछ भाग्य का फल है यह शायद । दोनों भाइयों में राम और भरत की तरह निश्चल प्रेम बना हुआ था । यद्यपि घर में कभी कभार क्लेश भी उत्पन्न हो जाया करता था मगर दोनों भाई उस क्लेश से खुद को अलग कर लेते थे । औरतों को जब तक मर्दों का साथ नहीं मिलता है तब तक वे क्लेश को ज्यादा नहीं खींच सकती है । दोनों भाइयों की इस नीति से घर में आमतौर पर सुख शांति बनी हुई थी । 
बड़े भाई रमेश की पत्नी गंगा दिन भर घर के काम धंधों में लगी रहती थी । उसे खाना बनाना, घर के काम करने में अतिशय सुख मिलता था । छोटे भाई सुरेश की पत्नी नर्मदा को अपने बच्चों से ही फुरसत नहीं मिलती थी । भगवान ने दोनों औरतों के साथ न्याय नहीं किया था । एक को निर्धन बना रखा था तो दूसरी को छप्पर फाड़कर दिया था । गंगा की गोद सूनी थी तो नर्मदा के चार बेटे थे । सबसे छोटा बेटा निखिल तो अभी छ: महीने का ही था । नर्मदा को इन चारों को नहलाने, धुलाने, खिलाने, पिलाने और इनके झगड़े सुलझाने से ही फुरसत नहीं थी इसलिए वह घर के कामों में क्या मदद कर पाती ? इसी कारण गंगा ने उसे रसोई से मुक्त कर दिया था । 

गंगा जब जब नर्मदा के बच्चों को खिलाती तब तब उसका ममत्व उमड़ पड़ता था । उसके सबसे छोटे बेटे निखिल को तो वह कभी गोदी से नीचे उतारती ही नहीं थी । उसकी नजरों में गंगा एक भिखारिन जैसी थी क्योंकि उसकी गोद सूनी थी और नर्मदा दुनिया की सबसे अमीर महिला लगती थी क्योंकि उसके चार चार बेटे थे । कभी कभी तो अकेले में गंगा चुपके चुपके रोती भी थी । भगवान की पूजा करते समय अक्सर उसकी रोज ही लड़ाई होती थी भगवान से । वह कहती थी कि उसने ऐसा क्या अपराध कर दिया कि उसे भगवान ने एक भी बच्चा नहीं दिया था । पुत्र नहीं दिया तो कम से कम एक पुत्री ही दे देता प्रभु ! पर भगवान भी इतने कंजूस होंगे, ये वो नहीं जानती थी । 

जब जब निखिल को नर्मदा अपने सीने से लगाकर दूध पिलाती थी तब तब गंगा को लगता था कि उसकी छातियों में भी दूध आ गया है । इसलिए कभी कभी वह अकेले में निखिल के मुंह में अपना स्तनाग्र डाल भी देती थी । लेकिन सूखे स्तनाग्र से निखिल को क्या हासिल होता ? वह जोर जोर से रोने लगता । तब गंगा उसे अपने सीने से अलग कर लेती थी । उसे एक अनजाना सा डर हरदम सताता था कि यदि ऐसा करते हुए नर्मदा ने देख लिया तो पता नहीं इसे क्या समझेगी वह ? 

निर्मल बहने वाली गंगा अब मन से मलिन रहने लगी थी । उसमें नर्मदा से ईर्ष्या के भाव आ गये थे । वह अब निखिल को भी गोदी में कम ही लेती थी और दूसरे बच्चों पर बिना बात चिल्लाने भी लगी थी । रमेश अपनी पत्नी के बदलते व्यवहार से बहुत परेशान था पर वह क्या कर सकता था ।

एक दिन रमेश ने गंगा के समक्ष एक प्रस्ताव रखा "क्यों न हम लोग सुरेश के बच्चे को गोद ले लें" ? प्रस्ताव सुनकर गंगा का चेहरा खिल गया और वह चहक कर बोली "क्या ऐसा हो सकता है ? क्या इसके लिए नर्मदा तैयार हो जायेगी" ? 
"क्यों नहीं तैयार होगी वह ? आखिर उसका बच्चा कहीं और थोड़े ही जा रहा है ? इसी घर में तो रहेगा वह और वह भी उसकी आंखों के सामने । केवल कानूनी रूप से ही तो हमारा होगा वह" । रमेश ने गंगा को सब तरफ से आश्वस्त कर दिया इससे गंगा का उदास चेहरा गुलाब सा खिल गया था । 

रमेश ने इसका जिक्र सुरेश से किया और सुरेश ने नर्मदा से । सुरेश के लिए तो बड़े भाई की इच्छा एक आदेश से भी बढकर थी बस उसे तो नर्मदा को ही मनाना था । नर्मदा बहुत समझदार स्त्री थी । परिवार किस तरह से एक रहता है, वह जानती थी । उसने हां कह दी पर एक शर्त भी लगा दी । "पहला बच्चा पिता का उत्तराधिकारी होता है इसलिए उसे गोद नहीं देगी वह । सबसे छोटा बच्चा मां बाप की आंखों का तारा होता है । वह चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो जाये, मां बाप के लिए वह हमेशा छोटा ही बना रहता है । सबसे छोटे बच्चे में मां बाप के प्राण बसते हैं इसलिए वह निखिल को भी गोद नहीं देगी । दूसरा रवि या तीसरा अशोक इनमें से किसी को भी गोद ले सकती है गंगा भाभी" । इसमें सुरेश को भी कोई आपत्ति नहीं थी । 

रवि को गोद लेने के बाद गंगा भाभी का रूप एकदम से निखर आया । उसकी खुशियों को चार चांद लग गये । मां कहलाना ही अपने आप में एक बहुत बड़ा वरदान है । रवि थोड़े दिन असमंजस में रहा कि कल तक वह गंगा को ताई कहता था आज उसे मम्मी क्यों कहला रहे हैं सब लोग ? लेकिन बच्चे परिस्थितियों से बहुत जल्दी सामंजस्य बैठा लेते हैं इसलिए थोड़े दिनों की उहापोह के पश्चात सब ठीक हो गया । 

इस तरह हंसते खेलते पांच साल बीत गये । जब आदमी का मन प्रसन्न होता है तो उसे हर व्यक्ति प्रसन्न नजर आता है । सारा वातावरण आनंदमय सा लगता है और उसके जीवन में सकारात्मकता आ जाती है । इस कारण उसके जीवन में बहुत सी अप्रत्याशित चीजें होने लगती हैं । गंगा के साथ भी ऐसा ही हुआ । उसे वहम हुआ कि उसकी माहवारी या तो बंद हो गई है या अनियमित हो गई है । कुछ दिन तो वह इसे टाल गई । एक दिन उसने रमेश से अपनी उलझन साझा कर ली । दूसरे दिन रमेश उसे एक स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास ले गया । उसने गंगा की संपूर्ण जांच की और मुस्कुराते हुए बोली 
"ये चिंता की नहीं बल्कि खुशी की बात है । आप मां बनने वाली हैं" 
गंगा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ । उसने आश्चर्य से डॉक्टर की ओर देखा तो डॉक्टर बोली "आपने बिल्कुल सही सुना है । आप सचमुच में मां बनने वाली हैं" । 
यह सुनकर गंगा आवेश में आकर डॉक्टर से लिपट गई । रमेश को भी विश्वास नहीं हुआ था कि भगवान बुढापे में ये खुशी भी दे सकता है ? पर ऊपरवाला तो जादूगर ठहरा । पल भर में माहौल बदल देता है वह । 

अब तो गंगा के पैर जमीन पर नहीं पड़ते थे । उसे अपने गर्भस्थ शिशु पर लाड़ आने लगा । अब वह सारा ध्यान अपने गर्भस्थ शिशु पर देने लगी । उसने रसोई में जाना बंद कर दिया । महरी लगा ली । झाड़ू पोंछा करने के लिए दो नौकर रख लिये । अब रवि के लिए उसके मन में उतना प्यार नहीं रह गया था जितना पहले था । नर्मदा गंगा में आये बदलावों को देख रही थी मगर वह खामोश ही रही । 

ठीक नौ महीने बाद उसके बेटा पैदा हुआ । बेटा होने पर उसने जिद कर ली कि इस उपलक्ष्य में एक बहुत बड़ा आयोजन करवाया जाये । उसका तर्क था "नर्मदा के चार बेटे हुए थे तो चार बार कार्यक्रम हुए थे । मेरे तो एक ही हुआ है । इसलिए जितना चारों कार्यक्रमों में पैसा खर्च हुआ था कम से कम उतना तो इस कार्यक्रम में होना ही चाहिए और मंहगाई भी तो बहुत बढ़ गई है आजकल" । उसके अकाट्य तर्कों के सामने कौन ठहर सकता था ? रमेश ने इतना ही कहा कि अभी बच्चा बहुत कमजोर है और अभी महीने भर का भी नहीं हुआ है यह । इसे कम से कम साल भर का हो जाने दो , फिर एक बहुत बड़ा कार्यक्रम कर लेंगे । लेकिन गंगा को तो सब काम तुरंत ही चाहिये थे इसलिए वह जिद पर अड़ गई । 

कुंआ पूजन का अभूतपूर्व कार्यक्रम हुआ । सब नाते रिश्तेदार बुलवाये गये । पूरे गांव को जीमण के लिए बुलवाया गया और पंडितों को दिल खोलकर दान दक्षिणा  दी गई । गंगा को अब न तो रवि से कोई मतलब था और न उसकी भूख प्यास से । गंगा ने रंग बदल लिया था । नर्मदा को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि गंगा गिरगिट की तरह से रंग बदल लेगी । लेकिन हकीकत सामने थी । रवि की उपेक्षा गंगा तो कर सकती थी लेकिन नर्मदा कैसे कर सकती है ? रवि को उसने अपनी कोख से पैदा किया है आखिर । वह गोद चला गया था तो क्या हुआ, नर्मदा का जाइन्दा बेटा तो था ही । नर्मदा खून के घूंट पीकर रह गई । वह अब गंगा को समझ गई थी । उसने रवि का भविष्य देख लिया था । 

एक दिन नर्मदा ने गंगा से बात चला ही दी "भाभी, अब तो आपका अपना पुत्र कृष्णा हो गया है इसलिए अब रवि को गोद रखने का कोई औचित्य नजर नहीं आता है । अगर आप बुरा ना मानो तो उसके गोद वापसी के कागजात बनवा लें" । नर्मदा ने संकोचवश कहा 
"जिंदगी में आज सबसे अच्छी बात कही है तूने । यह नेक काम जितनी जल्दी हो सके करवा लो, बहुत अच्छा रहेगा" । गंगा खुश होते हुए बोली । दूसरे दिन कागजात तैयार हो गये । अब रवि पुरानी स्थिति में आ गया था । 

ईश्वर की लीला अपरंपार है । कब क्या हो जाये क्या पता ? आज खुशी का मौसम है मगर यह कब तक रहेगा कौन जानता है ? कृष्णा अभी छ: महीने का भी नहीं हुआ था कि एक दिन उसे बुखार हो गया । उसे अस्पताल ले जाकर डॉक्टर को दिखाया तो उसने उसे निमोनिया बता दिया । डॉक्टर ने अपने सारे घोड़े दौड़ा लिये मगर वह कृष्णा को बचा नहीं सका । आसमान में बैठी गंगा धड़ाम से धरती पर आ गिरी । इस सदमे से वह टूट गई ।  एक घमंडी , गुस्सैल और अमीरजादी गंगा दीन हीन , अकिंचन , कमजोर गंगा में बदल गई  । गंगा ने इस बार भी अपना रूप बदल लिया था । रूप बदलने की कला गंगा से सीखी जा सकती है ।

कृष्णा की बरसी पर गंगा ने दबे स्वर से नर्मदा से कहा "मुझे फिर से रवि को दे दे ना । उसकी ही कृपा से मुझे खुशियां मिली थीं और उसके जाते ही मामला उल्टा पड़ गया । क्या पता उसके आ जाने से मैं फिर से आबाद हो जाऊं" । उसने नर्मदा के सामने अपनी झोली फैला दी । 
नर्मदा ने इतना ही कहा "रवि कोई खिलौना नहीं है भाभी, एक इंसान है । आप किसी अनाथालय से बच्चा ले लो । मेरे रवि को तो मेरे पास ही रहने दो" । नर्मदा रवि की पसंद का खाना बनाने चली गई । 

श्री हरि 
10.1.2023 


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10 Comments

Mohammed urooj khan

22-Jan-2023 09:37 PM

Shandar kahani 👌👌👌👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

23-Jan-2023 11:29 AM

हार्दिक अभिनंदन आदरणीय

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कहानी अच्छी है। पात्र और माहौल हर चीज का शानदार जिक्र। 👌🏻 खैर जैसे सबकी अपनी अपनी सोच होती है वैसे ही yh मेरी सोच है कि गंगा पूरी तरह गलत नहीं थी। बस उसकी गलती यह थी कि उसने अपने मन में जो यह धारणा बना ली थी कि नर्मदा भाग्यसाली है क्यूंकि उसके चार बेटे थे... और वह अभागिन कि उसकी एक बेटी भी नहीं। इस वजह से उसकी मानसिकता ऐसी हुई। हमारा समाज ही जो स्त्री माँ न बन सके उसे सुकून से नहीं रहने देता... तो उसकी मानसकिता ऐसी होएगी ही। यहाँ जरूरत है समाज को यह ज्ञान देने की कि जो स्त्री माँ नहीं बन सकती उसे भी सुकून से जीने का हक है।

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Hari Shanker Goyal "Hari"

23-Jan-2023 11:29 AM

सबकी अपनी अपनी सोच है मैम और सबके अपने अपने विचार । समाज अगर किसी की निंदा करता है तो किसी की प्रशंसा भी करता है । पर समाज को कोसने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं लोग । सबका अपना अपना नजरिया होता है । सब अपने नजरिये से सही होते हैं । आपने इतनी खूबसूरत समीक्षा लिखी है कि आभार प्रकट करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं । हार्दिक अभिनंदन मैम

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Gunjan Kamal

20-Jan-2023 04:29 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Hari Shanker Goyal "Hari"

22-Jan-2023 08:14 PM

धन्यवाद जी

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